Saturday 22 December 2018

विश्व कप जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम के कोच जॉन बुकानन भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रही चार टेस्ट मैचों की सीरीज में कड़ी नजर रखे हुए हैं

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विश्व कप जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम के कोच जॉन बुकानन भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रही चार टेस्ट मैचों की सीरीज में कड़ी नजर रखे हुए हैं। सीरीज शुरू होने से पहले उन्हें लगता था कि यह दोनों टीमों के लिए कठिन सीरीज होगी लेकिन अब उन्हें लगता है कि मेजबान ऑस्ट्रेलिया यह सीरीज जीत लेगा। बुकानन 1999 में विश्व कप जीतने के बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम के कोच बने। उनके कोच रहते हुए ऑस्ट्रेलिया ने 2003 और 2007 में भी आइसीसी विश्व कप जीता। 2006 में उनकी मदद से ऑस्ट्रेलियाई टीम ने पहली बार आइसीसी चैंपियंस ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। बुकानन ने कभी ऑस्ट्रेलिया के लिए अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला लेकिन वह शानदार कोच रहे। ऑस्ट्रेलियाई टीम के हालिया विवाद और भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज को लेकर अभिषेक त्रिपाठी ने जॉन बुकानन से विशेष बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश- 

’क्या पर्थ टेस्ट जीतकर ऑस्ट्रेलिया सीरीज का दावेदार बन गया है?

-सीरीज की शुरुआत होने से पहले सभी की तरह मैं भी मान रहा था कि यह काफी कड़ी सीरीज होगी। कुछ लोगों ने भारत को भी दावेदार बताया था लेकिन अब मुझे लगता है कि ऑस्ट्रेलिया यह सीरीज जीतेगा। उसके प्रदर्शन ने मुझे प्रभावित किया है।

’कई पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर भारतीय कप्तान विराट कोहली के मैदान में व्यवहार की आलोचना कर रहे हैं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?

-विराट ने अपने पूर्ववर्ती कप्तान सौरव गांगुली की परंपरा को जारी रखा है। वह किसी भी समय अपने फैसले से पीछे नहीं हटे और बाकी खिलाड़ियों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। वह इस खेल में कई रंग लेकर आए हैं। कभी-कभी वह दायरे से बाहर भी काम करते हैं लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि वह क्रिकेट की इज्जत करते हैं। वह खेल के इतिहास का भी सम्मान करते हैं। मुझे लगता है कि उनके जैसे नेतृत्वकर्ता की भारतीय टीम को जरूरत है। सिर्फ तकनीकि दृष्टि से नहीं बल्कि नेतृत्व की दृष्टि से भी वह अपनी विरासत छोड़ कर जाएंगे। विराट वह व्यक्ति हैं जिन्होंने गांगुली की विरासत को आगे बढ़ाया है।

’पर्थ में टीम हार गई लेकिन विराट ने शतक लगाया। आपने वह पारी देखी?

-पिछले टेस्ट में लगाया गया उनका शतक इस बात का उदाहरण है कि वह कितने अच्छे खिलाड़ी हैं। आधुनिक क्रिकेट में ज्यादातर टीमों और क्रिकेटरों को घर से बाहर खेलने में दिक्कत आती हैं क्योंकि वर्तमान कार्यक्रम किसी को दूसरे देश के अनुकूल खुद को ढालने के लिए उतना समय नहीं देता जितनी उसको जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि वह तकनीकी रूप से कितने दक्ष खिलाड़ी हैं।

’जब ऑस्ट्रेलियाई टीम सैंड पेपर से गेंद में छेड़छाड़ पर फंसी तो पूर्व कोच के तौर पर आपको कैसा लगा?

-दक्षिण अफ्रीका में जो हुआ मैं उस संस्कृति की बात कर रहा हूं। मुझे लगता है कि वह जोरदार, आक्रामक, घमंडी, विपक्ष को कमतर आंकना और विनम्रता की कमी होना था। ये शब्द इस बात को रेखांकित करते हैं कि बॉल टेंपरिंग विवाद से पहले तक टीम के अंदर किस तरह की संस्कृति थी।

’आपके समय में भी ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी विपक्षी टीम के खिलाड़ियों से भिड़ जाते थे। क्या आप उसे सही मानते हैं?

-जब मैं कोच था तो इस तरह की कुछ घटनाएं हुईं। आप इस तरह भी कह सकते हैं कि मेरे आठ साल के कार्यकाल में इस तरह की मुठ्ठी पर ही घटनाएं हुईं लेकिन इसके बावजूद उस समय की ऑस्ट्रेलियाई टीम को कुछ लोगों ने ‘बदसूरत टीम’ की संज्ञा दी थी। हालांकि उस टीम और पिछले दो वर्ष की ऑस्ट्रेलियाई टीम की तुलना करेंगे तो पता चलेगा कि उस समय के खिलाड़ियों ने अपने व्यवहार और तौर-तरीकों में बदलाव किया। उन्होंने अलग-अलग कारणों और अलग-अलग चरणों में अपने आपको बदला। हर बार मुझे लगता है कि हमने उनके साथ बहुत तेजी से और परिपक्व व्यवहार किया।

’क्या आपके समय टीम में बनी हर कीमत पर जीतने की मानसिकता के कारण केपटाउन जैसी गलती हुई?

-खेल जीतने और हारने के लिए ही होता है। हर टीम जीतने के बारे में सोचती है। वह हारने या ड्रॉ कराने के बारे में नहीं सोचती। इसके तहत हम अपनी क्षमताओं और दूसरी टीम के मुद्दों को समझते हैं। आप विपक्षी टीम या उसके खिलाड़ी की कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करते हो। ज्यादातर मौकों पर जीत हासिल करने के लिए हम अपनी भौतिक और सामरिक क्षमता का इस्तेमाल करते हैं इसीलिए मैं यह मानने को तैयार नहीं कि मेरे समय में जो हमने जीत हासिल करने के लिए नींव डाली उसकी वजह से केपटाउन वाली घटना हुई। मुझे लगता है कि मैंने जाते समय खेल को बहुत अच्छी जगह छोड़ा था और ऐसा उसके कुछ समय बात तक जारी भी रहा।

’तो फिर टीम में इस तरह की बात कब आई?

-मुझे लगता है कि टीम के आसपास खराब नेतृत्व था। यह कप्तान, उप कप्तान और मैनेजर पर निर्भर करता है। यह हर उस व्यक्ति पर निर्भर करता है जिसकी भी टीम के बर्ताव और कार्यो के प्रति जरा सभी जवाबदेही है।

’ मैदान में आकस्मिक भिड़ंत और व्यक्तिगत हमले के बीच में आप अंतर कैसे करते थे?

-मैं एक कोच के तौर पर इस मामले में बहुत स्पष्ट था। मैं इस बात के खिलाफ था कि टीम का कोई खिलाड़ी किसी विपक्षी के ऊपर व्यक्तिगत जुबानी हमला करे। अगर कोई किसी के खिलाफ व्यक्तिगत हमला करता है तो उसको रोकने की जिम्मेदारी मैदान में उसके आसपास मौजूद लोगों की होती है कि ऐसा फिर ना हो। मैं कह सकता हूं कि जिन खिलाड़ियों के समूह के साथ मैंने काम किया उनमें से अधिकतर अच्छे थे। अगर कोई टीम या खिलाड़ी किसी पर व्यक्तिगत तौर पर हमला करते हैं और उसके आसपास के लोग, अंपायर व मैनेजर कुछ नहीं करते तो यह मुख्य समस्या बन जाती है। ऐसे में सिर्फ वह व्यक्ति नहीं बल्कि वह टीम भी आइसीसी की आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आ जाती है। इसको लेकर एक रेखा खींची जानी चाहिए। अगर कोई किसी को रोकेगा नहीं तो ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। इसके लिए हर वह व्यक्ति जिम्मेदार होगा जिसने उस घटना को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

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