Friday 21 December 2018

कूकाबुरा प्रजाति के पक्षी (जेकी) के नाम पर स्थापित हुई यह कंपनी कई देशों में क्रिकेट बॉल और बैट बेचती है

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 मेलबर्न क्रिकेट मैदान (एमसीजी) से 18 किलोमीटर दूर स्थित कूकाबुरा स्पोर्ट्स की फैक्ट्री दुनियाभर के क्रिकेटरों के सपने पूरे करती है। संस्थापक एजी थॉमसन के कूकाबुरा प्रजाति के पक्षी (जेकी) के नाम पर स्थापित हुई यह कंपनी कई देशों में क्रिकेट बॉल और बैट बेचती है।

जब मैं मेलबर्न पहुंचा तो सोचा देखता हूं कि यहां पर जाकर देखूं कि क्रिकेट के सपनों को कैसे बुना जाता है। इस दौरान मैंने गेंद और बल्ले को बनते देखा, लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा ध्यान खींचा दुनिया की पहली सफेद क्रिकेट बॉल ने। कैरी पैकर सीरीज के पहले मैच के दौरान इस्तेमाल हुई दुनिया की पहली सफेद क्रिकेट गेंद आज भी कूकाबुरा फैक्ट्री में रखी हुई है।

कूकाबुरा के कम्यूनिकेशन मैनेजर शेनन गिल ने बताया कि हमने जो पहली सफेद गेंद बनाई थी वह क्रिकेट नहीं, हॉकी बॉल थी। 1956 में मेलबर्न में ओलंपिक हुए तो हमसे हॉकी बॉल भेजने को कहा गया। हमने उस समय क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली लाल गेंद को सफेद पेंट करके आयोजकों को भेज दिया। भारत ने उसी गेंद से खेलते हुए हॉकी के फाइनल में पाकिस्तान को 1-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता था। 

कूकाबुरा ने पहली सफेद क्रिकेट गेंद 1977-78 में कैरी पैकर वल्र्ड सीरीज क्रिकेट के लिए बनाई। आयोजकों की तरफ से कहा गया था कि ऐसी गेंद बनाएं जिससे रात को दूधिया रोशनी में मुकाबले खेले जा सकें। रिची बेनो, ग्रेग व इयान चैपल के साथ मिलकर तब कूकाबुरा ने सफेद क्रिकेट गेंद का इजाद किया।

कई अन्य रंगों के बारे में भी विचार हुआ, लेकिन 1956 का अनुभव काम आया। 1976 में ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड से प्रसारण के एक्सक्लूसिव अधिकार नहीं मिलने के कारण कैरी पैकर ने खिलाड़ियों से बगावत करवाकर यह सीरीज शुरू करवाई थी।

ऐसे हुई शुरुआत 

ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, बांग्लादेश सहित कई देशों में कूकाबुरा गेंद से टेस्ट मैच खेला जाता है। भारत में एसजी और इंग्लैंड व वेस्टइंडीज में ड्यूक गेंद से टेस्ट मैच होते हैं। विश्व में सभी दिन-रात के मुकाबले कूकाबुरा की सफेद और गुलाबी गेंदों से होते हैं। शेनन से जब पूछा गया कि आपके तीन क्रिकेटर स्टीव स्मिथ, डेविड वार्नर और बेनक्राफ्ट पर सैंड पेपर के इस्तेमाल के कारण प्रतिबंध लगा है तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि हम अपनी गेंदों में सैंड पेपर का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि 1888 में थॉमसन संयोग से गेंद निर्माता बन गए।

थॉमसन इंग्लैंड में घोड़े की काठी बनाते थे और साथ में गेंद रिपेयर करते थे, लेकिन काठी का कारोबार मंदा पड़ने के बाद उन्होंने गेंद का कारोबार किया। उनका ऑस्ट्रेलिया आना भी संयोग से हुआ। वह कनाडा जाना चाहते थे, लेकिन वहां पर ठंडक ज्यादा होने के कारण वह ऑस्ट्रेलिया आ गए। इसके बाद उन्होंने अपने पक्षी जैकी की प्रजाति के नाम पर इस गेंद का नाम रखा।

सिर्फ दो लोग बनाते हैं हाथ से बनी टेस्ट गेंद 

पूरी दुनिया में टेस्ट मैच में इस्तेमाल होने वाली हाथ से सिली हुई कूकाबुरा गेंद सिर्फ यहां पर दो लोग बनाते हैं। एक व्यक्ति को एक गेंद सिलने में 15-20 मिनट लगते हैं। शेनन ने बताया कि इन दोनों को 30 से 40 साल का अनुभव है। हमें डर लगता है कि इनमें से कोई रिटायर हो गया तो क्या होगा। हम कुछ नए लोगों को ट्रेनिंग दे रहे हैं, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण काम है।

जूनियर बनाता है सीनियर के बल्ले

कूकाबुरा के मुख्यालय में ही एक 25 साल का लड़का हमसे मिलने आया, तब उसके हाथ में एक बल्ला था। हमने पूछा यह किसका बल्ला है। उसने कहा, ऑस्ट्रेलियन टीम के बल्लेबाज उस्मान ख्वाजा का है, इस पर थोड़ा काम करना है। जिस उम्र में बच्चे क्रिकेटर बनने का सपना पालते हैं उस समय लालचन डिंगर के मन में कुछ अलग करने का भूत सवार हुआ। डिंगर ने बताया कि जब वह 14 साल के थे तब उनके पिता के व्यवसाय के कारण वह लकड़ियों के आसपास रहते थे।

इस वजह से क्रिकेट के बल्ले से लगाव हो गया। उसी वक्त उन्होंने मन में ठान लिया कि अब बल्ला ही बनाऊंगा। 14 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने घर के एक कोने में इस पर काम करना शुरू कर दिया। उनकी लगन देखते हुए कूकाबुरा में उन्हें नौकरी मिल गई। उन्होंने कहा कि यहां पर ऑस्ट्रेलिया ही नहीं श्रीलंका, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों के भी बल्ले बनाए जाते हैं।

1977-78 में कैरी पैकर वल्र्ड सीरीज क्रिकेट के लिए कूकाबुरा ने बनाई थी पहली सफेद क्रिकेटबॉल कूकाबुरा फैक्ट्री में आज भी संभालकर रखी गई हैं वर्षो पुरानी सफेद क्रिकेट बॉल। इसमें दुनिया की सबसे पहली सफेद क्रिकेट बॉल (लाल रंग के घेरे में) भी शामिल है। इसी से कैरी पैकर वल्र्ड सीरीज क्रिकेट का पहला मुकाबला खेला गया था।

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